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Indian Agriculture

जानिए गर्मियों में पशुओं के चारे की समस्या खत्म करने वाली नेपियर घास के बारे में

जानिए गर्मियों में पशुओं के चारे की समस्या खत्म करने वाली नेपियर घास के बारे में

भारत एक कृषि प्रधान देश है। क्योंकि, यहां की अधिकांश आबादी खेती किसानी पर निर्भर है। कृषि को अर्थव्यवस्था का मुख्य स्तंभ माना जाता है। भारत में खेती के साथ-साथ पशुपालन भी बड़े पैमाने पर किया जाता है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जहां खेती के पश्चात पशुपालन दूसरा सबसे बड़ा व्यवसाय है। किसान गाय-भैंस से लेकर भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में तरह-तरह के पशु पालते हैं। 

दरअसल, महंगाई के साथ-साथ पशुओं का चारा भी फिलहाल काफी महंगा हो गया है। ऐसा माना जाता है, कि चारे के तौर पर पशुओं के लिए हरी घास सबसे अच्छा विकल्प होती है। यदि पशुओं को खुराक में हरी घास खिलाई जाए, तो उनका दुग्ध उत्पादन भी बढ़ जाता है। लेकिन, पशुपालकों के सामने समस्या यही है, कि इतनी सारी मात्रा में वे हरी घास का प्रबंध कहां से करें? अब गर्मियों की दस्तक शुरू होने वाली है। इस मौसम में पशुपालकों के सामने पशु चारा एक बड़ी समस्या बनी रहती है। अब ऐसे में पशुपालकों की ये चुनौती हाथी घास आसानी से दूर कर सकती है।

नेपियर घास पशुपालकों की समस्या का समाधान है 

किसानों और पशुपालकों की इसी समस्या का हल ये हाथी घास जिसको नेपियर घास (Nepiyar Grass) भी कहा जाता है। यह एक तरह का पशु चारा है। यह तीव्रता से उगने वाली घास है और इसकी ऊंचाई काफी अधिक होती है। ऊंचाई में ये इंसानों से भी बड़ी होती है। इस वजह से इसको हाथी घास कहा जाता है। पशुओं के लिए यह एक बेहद पौष्टिक चारा है। कृषि विशेषज्ञों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, सबसे पहली नेपियर हाईब्रिड घास अफ्रीका में तैयार की गई थी। अब इसके बाद ये बाकी देशों में फैली और आज विभिन्न देशों में इसे उगाया जा रहा है।

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नेपियर घास को तेजी से अपना रहे लोग

भारत में यह घास 1912 के तकरीबन पहुंची थी, जब तमिलनाडु के कोयम्बटूर में नेपियर हाइब्रिड घास पैदा हुई। दिल्ली में इसे 1962 में पहली बार तैयार किया गया। इसकी पहली हाइब्रिड किस्म को पूसा जियंत नेपियर नाम दिया गया। वर्षभर में इस घास को 6 से 8 बार काटा जा सकता है और हरे चारे को अर्जित किया जा सकता है। वहीं, यदि इसकी उपज कम हो तो इसे पुनः खोदकर लगा दिया जाता है। पशु चारे के तौर पर इस घास को काफी तीव्रता से उपयोग किया जा रहा है।

नेपियर घास गर्म मौसम का सबसे उत्तम चारा है 

हाइब्रिड नेपियर घास को गर्म मौसम की फसल कहा जाता है, क्योंकि यह गर्मी में तेजी से बढ़ती है। विशेषकर उस वक्त जब तापमान 31 डिग्री के करीब होता है। इस फसल के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 31 डिग्री है। परंतु, 15 डिग्री से कम तापमान पर इसकी उपज कम हो सकती है। नेपियर फसल के लिए गर्मियों में धूप और थोड़ी बारिश काफी अच्छी मानी जाती है। 

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नेपियर घास की खेती के लिए मृदा व सिंचाई 

नेपियर घास का उत्पादन हर तरह की मृदा में आसानी से किया जा सकता है। हालांकि, दोमट मृदा इसके लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। खेत की तैयारी के लिए एक क्रॉस जुताई हैरो से और फिर एक क्रॉस जुताई कल्टीवेटर से करनी उचित रहती है। इससे खरपतवार पूर्ण रूप से समाप्त हो जाते हैं। इसे अच्छे से लगाने के लिए समुचित दूरी पर मेड़ बनानी चाहिए। इसको तने की कटिंग और जड़ों द्वारा भी लगाया जा सकता है। हालांकि, वर्तमान में ऑनलाइन भी इसके बीज मिलने लगे हैं। खेत में 20-25 दिन तक हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए।

सावधान : बढ़ती गर्मी में इस तरह करें अपने पशुओं की देखभाल

सावधान : बढ़ती गर्मी में इस तरह करें अपने पशुओं की देखभाल

फिलहाल गर्मी के दिन शुरू हो गए हैं। आम जनता के साथ-साथ पशुओं को भी गर्मी प्रभावित करेगी। ऐसे में मवेशियों को भूख कम और प्यास ज्यादा लगती है। पशुपालक अपने मवेशियों को दिन में न्यूनतम तीन बार जल पिलाएं। 

जिससे कि उनके शरीर को गर्म तापमान को सहन करने में सहायता प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त लू से संरक्षण हेतु पशुओं के जल में थोड़ी मात्रा में नमक और आटा मिला देना चाहिए। 

भारत के विभिन्न राज्यों में गर्मी परवान चढ़ रही है। इसमें महाराष्ट्र राज्य सहित बहुत से प्रदेशों में तापमान 40 डिग्री पर है। साथ ही, गर्म हवाओं की हालत देखने को मिल रही है। साथ ही, उत्तर भारत के अधिकांश प्रदेशों में तापमान 35 डिग्री तक हो गया है। 

इस मध्य मवेशियों को गर्म हवा लगने की आशंका रहती है। लू लगने की वजह से आम तौर पर पशुओं की त्वचा में सिकुड़न और उनकी दूध देने की क्षमता में गिरावट देखने को मिलती है। 

हालात यहां तक हो जाते हैं, कि इसके चलते पशुओं की मृत्यु तक हो जाने की बात सामने आती है। ऐसी भयावय स्थिति से पशुओं का संरक्षण करने के लिए उनकी बेहतर देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है।

पशुओं को पानी पिलाते रहें

गर्मी के दिनों में मवेशियों को न्यूनतम 3 बार जल पिलाना काफी आवश्यक होता है। इसकी मुख्य वजह यह है, कि जल पिलाने से पशुओं के तापमान को एक पर्याप्त संतुलन में रखने में सहायता प्राप्त होती है। 

इसके अतिरिक्त मवेशियों को जल में थोड़ी मात्रा में नमक और आटा मिलाकर पिलाने से गर्म हवा लगने की आशंका काफी कम रहती है। 

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यदि आपके पशुओं को अधिक बुखार है और उनकी जीभ तक बाहर निकली दिख रही है। साथ ही, उनको सांस लेने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। उनके मुंह के समीप झाग निकलते दिखाई पड़ रहे हैं तब ऐसी हालत में पशु की शक्ति कम हो जाती है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसे हालात में अस्वस्थ पशुओं को सरसों का तेल पिलाना काफी लाभकारी साबित हो सकता है। सरसों के तेल में वसा की प्रचूर मात्रा पायी जाती है। जिसकी वजह से शारीरिक शक्ति बढ़ती है। विशेषज्ञों के अनुरूप गाय और भैंस के पैदा हुए बच्चों को सरसों का तेल पिलाया जा सकता है।

पशुओं को सरसों का तेल कितनी मात्रा में पिलाया जाना चाहिए

सीतापुर जनपद के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह के अनुरूप, गर्मी एवं लू से पशुओं का संरक्षण करने के लिए काफी ऊर्जा की जरूरत होती है। ऐसी हालत में सरसों के तेल का सेवन कराना बेहद लाभकारी होता है। 

ऊर्जा मिलने से पशु तात्कालिक रूप से बेहतर महसूस करने लगते हैं। हालांकि, सरसों का तेल पशुओं को प्रतिदिन देना लाभकारी नहीं माना जाता है। 

डॉ आनंद सिंह के अनुसार, पशुओं को सरसों का तेल तभी पिलायें, जब वह बीमार हों अथवा ऊर्जा स्तर निम्न हो। इसके अतिरिक्त पशुओं को एक बार में 100 -200 ML से अधिक तेल नहीं पिलाना चाहिए। 

हालांकि, अगर आपकी भैंस या गायों के पेट में गैस बन गई है, तो उस परिस्थिति में आप अवश्य उन्हें 400 से 500 ML सरसों का तेल पिला सकते हैं। 

साथ ही, पशुओं के रहने का स्थान ऐसी जगह होना चाहिए जहां पर प्रदूषित हवा नहीं पहुँचती हो। पशुओं के निवास स्थान पर हवा के आवागमन के लिए रोशनदान अथवा खुला स्थान होना काफी जरुरी है।

पशुओं की खुराक पर जोर दें

गर्मी के मौसम में लू के चलते पशुओं में दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। उनको इस बीच प्रचूर मात्रा में हरा एवं पौष्टिक चारा देना अत्यंत आवश्यक होता है। 

हरा चारा अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। हरे चारे में 70-90 फीसद तक जल की मात्रा होती है। यह समयानुसार जल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इससे पशुओं की दूध देने की क्षमता काफी बढ़ जाती है।

अरहर की खेती (Arahar dal farming information in hindi)

अरहर की खेती (Arahar dal farming information in hindi)

दोस्तों आज हम बात करेंगे अरहर की दाल के विषय पर, अरहर की दाल को बहुत से लोग तुअर की दाल भी कहते हैं। अरहर की दाल बहुत खुशबूदार और जल्दी पच जाने वाली दाल कही जाती है। अरहर की दाल से जुड़ी सभी आवश्यक बातों को भली प्रकार से जानने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे:

अरहर की दाल का परिचय:

आहार की दृष्टिकोण से देखे तो अरहर की दाल बहुत ही ज्यादा उपयोगी होती है। क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के आवश्यक तत्व मौजूद होते हैं जैसे: खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि भरपूर मात्रा में मौजूद होता है। अरहर की दाल को रोगियों को खिलाना लाभदायक होता है। लेकिन जिन लोगों में गैस कब्ज और सांस जैसी समस्या हो उनको अरहर दाल का सेवन थोड़ा कम करना होगा। अरहर की दाल शाकाहारी भोजन करने वालो का मुख्य साधन माना जाता है शाकाहारी अरहर दाल का सेवन बहुत ही चाव से करते हैं।

अरहर दाल की फसल के लिए भूमि का चयन:

अरहर की फ़सल के लिए सबसे अच्छी भूमि हल्की दोमट मिट्टी और हल्की प्रचुर स्फुर वाली भूमि सबसे उपयोगी होती है। यह दोनों भूमि अरहर दाल की फसल के लिए सबसे उपयुक्त होती हैं। बीज रोपण करने से पहले खेत को अच्छी तरह से दो से तीन बार हल द्वारा जुताई करने के बाद, हैरो चलाकर खेतों की अच्छी तरह से जुताई कर लेना चाहिए। अरहर की फ़सल को खरपतवार से सुरक्षित रखने के लिए जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना उचित होता है। तथा पाटा चलाकर खेतों को अच्छी तरह से समतल कर लेना चाहिए। अरहर की फसल के लिए काली भूमि जिसका पी.एच .मान करीब 7.0 - 8. 5 सबसे उत्तम माना जाता है।

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अरहर दाल की प्रमुख किस्में:

अरहर दाल की विभिन्न विभिन्न प्रकार की किस्में उगाई जाती है जो निम्न प्रकार है:

  • 2006 के करीब, पूसा 2001 किस्म का विकास हुआ था। या एक खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली किस्म है। इसकी बुवाई में करीब140 से लेकर 145 दिनों का समय लगता है। प्रति एकड़ जमीन में या 8 क्विंटल फ़सल की प्राप्ति होती है।
  • साल 2009 में पूसा 9 किस्म का विकास हुआ था। इस फसल की बुवाई खरीफ रबी दोनों मौसम में की जाती है। या फसल देर से पकती है 240 दिनों का लंबा समय लेती है। प्रति एकड़ के हिसाब से 8 से 10 क्विंटल फसल का उत्पादन होता है।
  • साल 2005 में पूसा 992 का विकास हुआ था। यह दिखने में भूरा मोटा गोल चमकने वाली दाल की किस्म है।140 से लेकर 145 दिनों तक पक जाती है प्रति एकड़ भूमि 6.6 क्विंटल फसल की प्राप्ति होती है। अरहर दाल की इस किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा, पश्चिम तथा उत्तर प्रदेश दिल्ली तथा राजस्थान में होती है।
  • नरेंद्र अरहर 2, दाल की इस किस्म की बुवाई जुलाई मे की जाती हैं। पकने में 240 से 250 दिनों का टाइम लेती है। इस फसल की खेती प्रति एकड़ खेत में 12 से 13 कुंटल होती है। बिहार, उत्तर प्रदेश में इस फसल की खेती की जाती।
  • बहार प्रति एकड़ भूमि में10 से 12 क्विंटल फसलों का उत्पादन होता है। या किस्म पकने में लगभग 250 से 260 दिन का समय लेती है।
  • दाल की और भी किस्म है जैसे, शरद बी आर 265, नरेन्द्र अरहर 1और मालवीय अरहर 13,

आई सी पी एल 88039, आजाद आहार, अमर, पूसा 991 आदि दालों की खेती की प्रमुख है।

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अरहर दाल की फ़सल बुआई का समय:

अरहर दाल की फसल की बुवाई अलग-अलग तरह से की जाती है। जो प्रजातियां जल्दी पकती है उनकी बुवाई जून के पहले पखवाड़े में की जाती है विधि द्वारा। दाल की जो फसलें पकने में ज्यादा टाइम लगाती है। उनकी बुवाई जून के दूसरे पखवाड़े में करना आवश्यक होता है। दाल की फसल की बुवाई की प्रतिक्रिया सीडडिरल यह फिर हल के पीछे चोंगा को बांधकर पंक्तियों द्वारा की जाती है।

अरहर दाल की फसल के लिए बीज की मात्रा और बीजोपचार:

जल्दी पकने वाली जातियों की लगभग 20 से 25 किलोग्राम और धीमे पकने वाली जातियों की 15 से 20 किलोग्राम बीज /हेक्टर बोना चाहिए। जो फसल चैफली पद्धति से बोई जाती हैं उनमें बीजों की मात्रा 3 से 4 किलो प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। फसल बोने से पहले करीब फफूदनाशक दवा का इस्तेमाल 2 ग्राम थायरम, 1 ग्राम कार्बेन्डेजिम यह फिर वीटावेक्स का इस्तेमाल करे, लगभग 5 ग्राम ट्रयकोडरमा प्रति किलो बीज के हिसाब से प्रयोग करना चाहिए। उपचारित किए हुए बीजों को रायजोबियम कल्चर मे करीब 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करने के बाद खेतों में लगाएं।

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अरहर की फसल की निंदाई-गुडाईः

अरहर की फसल को खरपतवार से सुरक्षित रखने के लिए पहली निंदाई लगभग 20 से 25 दिनों के अंदर दे, फूल आने के बाद दूसरी निंदाई शुरू कर दें। खेतों में दो से तीन बार कोल्पा चलाने से अच्छी तरह से निंदाई की प्रक्रिया होती है। तथा भूमि में अच्छी तरह से वायु संचार बना रहता है। फसल बोने के नींदानाषक पेन्डीमेथीलिन 1.25 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व / हेक्टर का इस्तेमाल करे। नींदानाषक का इस्तेमाल करने के बाद नींदाई करीब 30 से 40 दिन के बाद करना आवश्यक होता है।

अरहर दाल की फसल की सिंचाईः

किसानों के अनुसार यदि सिंचाई की व्यवस्था पहले से ही उपलब्ध है, तो वहां एक सिंचाई फूल आने से पहले करनी चाहिए। तथा दूसरे सिंचाई की प्रक्रिया खेतों में फलिया की अवस्था बन जाने के बाद करनी चाहिए। इन सिंचाई द्वारा खेतों में फसल का उत्पादन बहुत अच्छा होता है।

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अरहर की फसल की सुरक्षा के तरीके:

कीटो से फसलों की सुरक्षा करने के लिए क्यूनाल फास या इन्डोसल्फान 35 ई0सी0, 20 एम0एल का इस्तेमाल करें। फ़सल की सुरक्षा के लिए आप क्यूनालफास, मोनोक्रोटोफास आदि को पानी में घोलकर खेतों में छिड़काव कर सकते हैं। इन प्रतिक्रियाओं को अपनाने से खेत कीटो से पूरी तरह से सुरक्षित रहते हैं। दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि आपको हमारा या आर्टिकल अरहर पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में अरहर से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारियां मौजूद हैं। जो आपके बहुत काम आ सकती है। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट है तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

बाजरा देगा कम लागत में अच्छी आय

बाजरा देगा कम लागत में अच्छी आय

बाजरा खरीफ की मुख्य फसल है लेकिन अब इसे रबी सीजन में भी कई इलाकों में लगाया जाता है। गर्मियों में इसमें रोग भी कम आते हैं और साल भर यह खाद्य सुरक्षा में भी योगदान दे पाता है। इसके लिए यह जानना जरूरी है कि बाजरे की उन्नत खेती कैसे करें 

बाजरे की आधुनिक, वैज्ञानिक खेती

बाजरा कोस्टल क्राप है और किसी भी कोस्टल क्राप में पोषक तत्व गेहूं जैसी सामान्य फसलों के मुकाबले कहीं ज्यादा होते हैं। बाजरा की हाइब्रिड किस्मों का उत्पादन गेहूं की खेती से ज्यादा लाभकारी हो रहा हैं। कम पानी और उर्वरकों की मदद से इसकी खेती हो जाती है। अन्न के साथ साथ यह पशुओं को हरा और सूखा भरपूर चारा भी दे जाता है। बाजरे के दाने में 11.6 प्रतिशत प्रोटीन, 5.0 प्रतिशत वसा, 67.0 प्रतिशत कार्बोहाइडेट्स एवं 2.7 प्रतिशत खनिज लवण होते हैं। इसकी खेती के लिए दोमट एवं जल निकासी वाली मृदा उपयुक्त रहती है। रेगिस्तानी इलाकों में सूखी बुबाई कर पानी लगाने की व्यवस्था करें। एक हैक्टेयर खेत की बुवाई के लिए 4 से 5 कि.ग्रा. प्रमाणित बीज पर्याप्त रहता है। 

बाजरे की उन्नत किस्में, संकर

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बाजरा की संकर किस्में ज्यादा प्रचलन में हैं। इनमें राजस्थान के लिए आरएचडी 21 एवं 30,उत्तर प्रदेश के लिए पूसा 415,हरियाणा एचएचबी 505,67 पूसा 123,415,605,322, एचएचडी 68, एचएचबी 117 एवं इम्प्रूब्ड, गुजरात के लिए पूसा 23, 605, 415,322, जीबीएच 15, 30,318, नंदी 8, महाराष्ट्र के लिए पूसा 23, एलएलबीएच 104, श्रद्धा, सतूरी, कर्नाटक पूसा 23 एवं आंध्र प्रदेश के लिए आईसीएमबी 115 एवं 221 किस्म उपयुक्त हैं। बाजार में प्राईवेट कंपनियों जिनमें पायोनियर, बायर, महको, आदि की अनेक किस्में किसानों द्वारा लगाई जाती हैं। आरएचबी 177 किस्म जोगिया रोग रोधी तथा शीघ्र पकने वाली है। औसत पैदावार लगभग 10-20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा सूखे चारे की पैदावार 40-45 क्विंटल है। आरएचबी 173 किस्म 75-80 दिन, आरएचबी 154 बाजरे की किस्म देश के अत्यन्त शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों के लिये अधिसूचित है। 70-75 दिन में पकती है। आईसीएमएच 356- यह सिंचित एवं बारानी, उच्च व कम उर्वरा भूमि के लिए उपयुक्त, 75-80 दिन में पकने वाली संकर किस्म हैं। तुलासिता रोग प्रतिरोधी इस किस्म की औसत उपज 20-26 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। आईसीएमएच 155 किस्म 80-100 दिन में पककर 18-24 क्विंटल उपज देती है। एचएचबी 67 तुलासिता रोग रोधक है। 80-90 दिन में पककर 15-20 क्विंटल उपज देती है।

 

बीजोपचार

 

 बीज को नमक के 20 प्रतिशत घोल में लगभग पांच मिनट तक डुबो कर गून्दिया या चैंपा से फसल को बचाया जा सकता हैं। हल्के बीज व तैरते हुए कचरे को जला देना चाहिये। तथा शेष बचे बीजों को साफ पानी से धोकर अच्छी प्रकार छाया में सुखाने के बाद बोने के काम में लेना चाहिये। उपरोक्त उपचार के बाद प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थायरम दवा से उपचारित करें। दीमक के रोकथाम हेतु 4 मिलीलीटर क्लोरीपायरीफॉस 20 ई.सी. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। 

बुवाई का समय एवं विधि

  bajra kheti 

 बाजरा की मुख्य फसल की बिजाई मध्य जून से मध्य जुलाई तक होती है वहीं गर्मियों में बाजारा की फसल लगाने के लिए मार्च में बिजाई होती है। बीज को 3 से 5 सेमी गहरा बोयें जिससे अंकुरण सफलतार्पूवक हो सके। कतार से कतार की दूरी 40-45 सेमी तथा पौधे से पौधे की दरी 15 सेमी रखें। 

खाद एवं उर्वरक

बाजरा की बुवाई के 2 से 3 सप्ताह पहले 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिए। पर्याप्त वर्षा वाले इलाकों में अधिक उपज के लिए 90 कि.ग्रा. नाइटोजन एवं 30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से दें।

 

खरपतवार नियंत्रण

बाजरा की बुवाई के 3-4 सप्ताह तक खेत में निडाई कर खरपतवार निकाल लें। आवश्यकतानुसार दूसरी निराई-गुड़ाई के 15-20 दिन पश्चात् करें। जहां निराई सम्भव न हो तो बाजरा की शुद्ध फसल में खरपतवार नष्ट करने हेतु प्रति हेक्टेयर आधा कि.ग्रा. एट्राजिन सक्रिय तत्व का 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

 

सिंचाई

 

 बाजरा की सिंचित फसल की आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए। पौधे में फुटान होते समय, सिट्टे निकलते समय तथा दाना बनते समय भूमि में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए।

स्वीट कॉर्न की खेती से किसानों को काफी लाभ होगा, सिर्फ इन बातों का रखें खास ख्याल

स्वीट कॉर्न की खेती से किसानों को काफी लाभ होगा, सिर्फ इन बातों का रखें खास ख्याल

कृषक भाई स्वीट कॉर्न की खेती कर के शानदार मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। भारत ही नहीं विदेशों में भी इसे काफी पसंद किया जाता है। चाहें कैसा भी मौसम हो स्वीट कॉर्न का स्वाद सब की जुबां पर रहता है। विशेष तौर पर पहाड़ों की सेर के समय और बारिश के दौरान स्वीट कॉर्न को बड़े ही चाव से खाया जाता है। बतादें, कि स्वीट कॉर्न मक्के की मीठी किस्म है। इसकी फसल के पकने से पूर्व ही दूधिया अवस्था में इसकी कटाई की जाती है। स्वीट कॉर्न भारत के साथ-साथ विदेश में भी बेहद पसंद किया जाता है। ऐसी स्थिति में किसान भाई इसकी खेती कर बेहतरीन मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।

स्वीट कॉर्न की खेती किस तरह होती है

स्वीट कॉर्न की खेती मक्का की खेती की भांति ही होती है। स्वीट कॉर्न की खेती में मक्का की फसल पकने से पूर्व ही तोड़ दी जाती है। इस वजह से किसानों को बेहद शीघ्रता से अच्छी कमाई मिलती है। स्वीट कॉर्न के साथ-साथ फूलों की खेती करके किसान एक ही वक्त में दो गुना ज्यादा धन कमाने के लिए गेंदा, ग्लेडियोलस एवं मसालों की सहफसली खेती भी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त आप एक खेत में पालक, मटर, गोभी और धनिया भी उगा सकते हैं।

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स्वीट कॉर्न को अधिक समय तक स्टोर करके ना रखें

स्वीट कॉर्न की फसल कटाई एक बेहद ही आसान प्रक्रिया है। बतादें, कि फसल कटाई के लिए तैयार तब होती गई जब भुट्टों से दूधिया पदार्थ निकलने लगता है। सुबह अथवा शाम में स्वीट कॉर्न की कटाई करें, इससे फसल अधिक समय तक तरोताजा रहेगी। तुड़ाई पूर्ण होने पर इसको मंडियों में बेच दें। स्वीट कॉर्न को ज्यादा दिनों तक स्टोर करके न रखें, क्योंकि इससे इसकी मिठास कम हो जाएगी।

 

किसान इन बातों का विशेष ख्याल रखें

  • जब आप इसकी खेती करते हैं, तो आप मक्का की उन्नत किस्मों को ही चुनें।
  • कीट-रोधी किस्मों को कम समयावधि में पकना चाहिए।
  • खेत की तैयारी के दौरान जल निकासी की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करें, ताकि फसल में जल भराव न हो।
  • स्वीट कॉर्न वैसे तो संपूर्ण भारत में उगाई जाती है, परंतु उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा पैदावार होती है।
  • स्वीट कॉर्न की बुवाई रबी एवं खरीफ दोनों ही सीजनों में की जा सकती है।

जानिए कैसे करें उड़द की खेती

जानिए कैसे करें उड़द की खेती

उड़द की खेती भारत में लगभग सभी राज्यों में होती है. ये मनुष्यों के लिए तो फायदेमंद है ही साथ ही खेत की सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद है. हमारे देश में दालों की भारी कमी है. इस वजह से भी ये कभी महंगी और ज्यादा मांग वाली दाल है. 

भारत सरकार ने 2019-20 के दौरान 4 लाख टन के कुल उड़द आयात की अनुमति दी थी। यह दर्शाता है की दाल की मांग की पूर्ती हम अपने उत्पादन से नहीं कर पाते हैं इसके लिए हमें दाल के लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है. 

पिछले वित्त वर्ष में भारत सरकार ने 4 लाख टन के आयात की अनुमति दी थी. 2019 - 20 में उद्योग के सूत्रों का कहना है कि वर्तमान में, उड़द केवल म्यांमार में उपलब्ध है। 

म्यांमार में उड़द का हाजिर मूल्य लगभग 810 डॉलर प्रति क्विंटल है। भारत को बारिश की शुरुआत में देरी के कारण उड़द के आयात का सहारा लेना पड़ा, जिसके बाद फसल की अवधि के दौरान अधिक और निरंतर वर्षा के कारण उत्पादन में गिरावट आई। 

 उड़द या किसी भी दलहन वाली फसल के उत्पादन से किसानों को फायदा ही है. बशर्ते की आपकी जमीन उस फसल को पकड़ने वाली हो. कई बार देखा गया है की सब कुछ ठीक होते हुए भी उड़द की फसल नहीं हो पाती है. 

उसके पीछे का कारण कोई भी हो सकता है जैसे मिटटी में पोषण तत्वों की कमी, पानी का सही न होना. इसके लिए हमें अपने खेत की मिटटी और पानी का समय समय पर टेस्ट करना चाहिए. 

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खेत की तैयारी:

उड़द के लिए खेत की तैयारी करते समय पहली जुताई हैंरों से कर देना चाहिए उसके बाद कल्टीवेटर से 3 जोत लगा के पाटा लगा देना चाइए जिससे की खेत समतल हो जाये. 

उड़द की फसल के लिए खेत का चुनाव करते समय ध्यान रखें की खेत में पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए. जिससे की बारिश में या पानी देते समय अगर पानी ज्यादा हो जाये तो उसे निकला जा सके.

मिटटी:

वैसे उड़द की फसल के लिए दोमट और रेतीली जमीन ज्यादा सही रहती हैं लेकिन इसकी फसल को काली मिटटी में भी उगाया जा सकता है. 

हल्की रेतीली, दोमट या मध्यम प्रकार की भूमि जिसमे पानी का निकास अच्छा हो उड़द के लिये अधिक उपयुक्त होती है। पी.एच. मान 6- 8 के बीच वाली भूमि उड़द के लिये उपजाऊ होती है। अम्लीय व क्षारीय भूमि उपयुक्त नही है।

उड़द की उन्नत किस्में या उड़द के प्रकार :

उड़द की निम्नलिखित किस्में हैं जो की ज्यादातर बोई जाती है. टी-9 , पंत यू-19 , पंत यू - 30 , जे वाई पी और यू जी -218 आदि प्रमुख प्रजातियां हैं. 

बीज की दर या उड़द की बीज दर:

बुवाई के लिए उड़द के बीज की सही दर 12-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है अगर बीज किसी अच्छी संस्था या कंपनी ने तैयार किया है तो. और अगर बीज आपके घर का है या पुराना बीज है तो इसकी थोड़ी मात्रा बढ़ा के बोना चाहिए.

खेत में अगर किसी वजह से नमी कम हो, तो 2-3 किलोग्राम बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर बढ़ाई जा सकती है जिससे की अपने खेत में पौधों की कमी न रहे. जब पौधे थोड़े बड़े हो जाएँ तो ज्यादा पास वाले पौधों को एक निश्चित दूरी के हिसाब से रोपाई कर दें.

बुवाई का समय:

फ़रवरी या मार्च में भी उड़द की फसल को लगाया जाता है तथा इस तरह से इस फसल को बारिश शुरू होने से पहले काट लिया जाता है. 

खरीफ मौसम में उड़द की बुवाई का सही समय जुलाई के पहले हफ्ते से ले कर 15-20 अगस्त तक है. हालांकि अगस्त महीने के अंत तक भी इस की बुवाई की जा सकती है. 

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उड़द में खरपतवार नियंत्रण:

बुवाई के 25 से 30 दिन बाद तक खरपतवार फसल को अत्यधिक नुकसान पहुँचातें हैं यदि खेत में खरपतवार अधिक हैं तो 20-25 दिन बाद एक निराई कर देना चाहिए और अगर खरपतवार नहीं भी है तो भी इसमें समय-समय पर निराई गुड़ाई होती रहनी चाहिए। 

जिन खेतों में खरपतवार गम्भीर समस्या हों वहॉं पर बुवाई से एक दो दिन पश्चात पेन्डीमेथलीन की 0.75 किग्रा0 सक्रिय मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करना सही रहता है। कोशिश करें की खरपतवार को निराई से ही निकलवायें तो ज्यादा सही रहेगा.

तापमान और उसका असर:

उड़द की फसल पर मौसम का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. इसको 40 डिग्री तक का तापमान झेलने की क्षमता होती है. इसको कम से कम 20+ तापमान पर बोया जाना चाहिए.

उड़द की खेती से कमाई:

उड़द की खेती से आमदनी तो अच्छी होती ही है और इसके साथ-साथ खेत को भी अच्छा खाद मिलता है. इसकी पत्तियों से हरा खाद खेत को मिलता है.

बरसात के मौसम में बकरियों की इस तरह करें देखभाल | Goat Farming

बरसात के मौसम में बकरियों की इस तरह करें देखभाल | Goat Farming

बरसात में बकरियों का विशेष रूप से ख्याल रखना पड़ता है। इस मौसम में उनको बीमार होने का खतरा ज्यादा रहता है। इसलिए आज हम आपको इस लेख में बताएंगे कि आप बारिश के दिनों में कैसे अपनी बकरी की देखभाल करें। गांव में गाय-भैंस की भांति बकरी पालने का भी चलन आम है। आज के वक्त में बहुत सारे लोग बकरी पालन से प्रति वर्ष मोटी आमदनी करने में सफल हैं। हालांकि, बरसात के दौरान बकरियों को बहुत सारे गंभीर रोग पकड़ने का खतरा रहता है। इस वजह से इस मौसम में पशुपालकों द्वारा उनका विशेष ख्याल रखा जाता है। आज हम आपको यह बताएंगे कि बरसात में बकरियों की देखभाल किस तरह की जा सकती है। 

बकरियों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें

पशुपालन विभाग द्वारा जारी सुझावों के मुताबिक, बरसात में बकरियों को जल से भरे गड्ढों अथवा खोदे हुए इलाकों से दूर रखें ताकि वे फंस न जाएं। बारिश से बचाने के लिए उन्हें घर से बाहर भी शेड के नीचे रखें। क्योंकि पानी में भीगने से उनकी सेहत पर काफी दुष्प्रभाव पड़ सकता है। 

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बकरियों के लिए चारा-जल इत्यादि की उचित व्यवस्था करें

बरसात के समय, बकरियों के लिए स्वच्छ पानी मुहैय्या कराएं। अगर वे बाहर रहते हैं, तो उनके लिए छत के नीचे पानी की व्यवस्था करें। जिससे कि वे ठंड और बरसात से बच सकें। आपको उन्हें स्वच्छ एवं सुरक्षित भोजन भी प्रदान करना होगा। बरसात में आप चारा, घास अथवा अन्य विशेष आहार उनको प्रदान कर सकते हैं। 

बकरियों के आसपास स्वच्छता का विशेष बनाए रखें

बरसात में इस बात का ध्यान रखें, कि बकरियों के आसपास की स्वच्छता कायम रहे। उनके लिए स्थायी अथवा अस्थायी शेल्टर का भी उपयोग करें, जिससे कि वे ठंड और नमी से बच सकें। 

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बकरियों का टीकाकरण कराऐं

बकरियों के स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए उनको नियमित तौर पर वैक्सीनेशन उपलब्ध कराएं। इसके लिए पशु चिकित्सक से सलाह भी लें एवं उन्हें बकरियों के लिए अनुशासनिक टीकाकरण अनुसूची बनाने की बात कही है।

FMCI निदेशक राजू कपूर ने इस 2024 में ड्रोन का कृषि में उपयोग बढ़ने की संभावना जताई

FMCI निदेशक राजू कपूर ने इस 2024 में ड्रोन का कृषि में उपयोग बढ़ने की संभावना जताई

केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा किसानों की आमदनी को दोगुना करने का निरंतर प्रयास रहता है। इसी कड़ी में 2024 में उर्वरक और कृषि रसायन छिड़काव में ड्रोन के इस्तेमाल को प्रोत्साहन मिलेगा। एफएमसी इंडिया के निदेशक राजू कपूर – कृषि रसायन उद्योग ने वर्ष 2023 में सामने आई चुनौतियों का सामना करते  हुए सतर्क व सकारात्मक आशावाद के साथ 2024 में प्रवेश किया है। 2023 के दौरान कृषि क्षेत्र में जीवीए 1.8% प्रतिशत तक गिर गया। वहीं, कृषि रसायन उद्योग के अंदर प्रमुख चालक बरकरार रहे। इस वजह से इस क्षेत्र को खुद को रीबूट (रीस्टार्ट) करने की आवश्यकता है।

जीवीए से आप क्या समझते हैं ?

सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) किसी अर्थव्यवस्था (क्षेत्र, क्षेत्र या देश) में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के समकुल मूल्य का माप है। जीवीए से यह भी पता चलता है, कि किस विशेष क्षेत्र, उद्योग अथवा क्षेत्र में कितनी पैदावार हुई है। 

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इस 2024 में फसल सुरक्षा उद्योग में वृद्धि की संभावना 

बतादें, कि वर्ष 2023 की द्वितीय छमाही में वैश्विक स्तर पर फसल सुरक्षा उद्योग पर डीस्टॉकिंग (भंडारण क्षमता को कम करना) का विशेष प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिला है। 2024 के चलते यदि मौसम सही रहा, तो भारतीय फसल सुरक्षा उद्योग में वर्ष की तीसरी/चौथी तिमाही में ही उछाल आने की संभावना है। जो कि समग्र बाजार की गतिशीलता में सामान्य हालात की वापसी का संकेत है। वही, रबी 2023 के लिए बुआई का क्षेत्रफल काफी सीमा तक क्षेत्रीय फसलों के लिए बरकरार है। परंतु, बुआई में दलहन और तिलहन के क्षेत्रफल में गिरावट उद्योग के लिए नकारात्मक है।

एफएमसी इंडिया के उद्योग एवं सार्वजनिक मामले के निदेशक राजू कपूर का कहना है, कि चीन से कृषि रसायनों की ‘डंपिंग’ में नरमी की आशा करनी चाहिए। प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर एक महत्वपूर्ण प्रगति उर्वरक एवं कृषि रसायन छिड़काव के लिए ड्रोन के उपयोग में काफी वृद्धि है। सरकार समर्थित ‘ड्रोन दीदी’ योजना की शुरुआत से इसे बड़ा प्रोत्साहन मिलने की संभावना है। उर्वरक और कृषि रसायन उद्योग के मध्य शानदार समन्वय से ड्रोन को एक सेवा अवधारणा के तौर में स्थिर करने में सहायता मिलेगी, इसकी वजह से फसल सुरक्षा और पोषण उपयोग दक्षता व प्रभावकारिता में सुधार आऐगा।

खरपतवारों व कीटनाशकों के लिए नियंत्रण योजना

श्री कपूर ने कहा “हमें गेहूं की फसलों में फालारिस जैसे खरपतवारों और गुलाबी बॉलवॉर्म जैसे कीटनाशकों से झूझने के लिए नए अणुओं के अनावरण की भी आशा करनी चाहिए। नवीन अणुओं के विनियामक अनुमोदन के लिए लगने वाले वक्त को तर्कसंगत बनाने के नियामक निकाय केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड की घोषणा से इसे बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।”

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बागवानी उत्पादन की लगातार बढ़ोतरी कवकनाशी की लगातार मांग के लिए सकारात्मक होगी। हालांकि, जेनेरिक उत्पादों को दबाव का सामना करना पड़ सकता है। परंतु, सहायक सरकारी योजनाओं के साथ उद्योग का दूरदर्शी दृष्टिकोण यह सुनिश्चित कर सकता है कि उद्योग विकास मार्ग पर लौट आए। श्री कपूर ने कहा कि 2024 में कृषि उद्योग की संभावनाएं इसके नवाचार एवं रणनीतिक कार्यों की खूबियां हैं। यह क्षेत्र सशक्त खाद्य मांग एवं टिकाऊ कृषि प्रथाओं के प्रति प्रतिबद्धता की वजह से एक साल के विस्तार के लिए तैयार है।

पूसा परिसर में बिल गेट्स ने किया दौरा, खेती किसानी के प्रति व्यक्त की अपनी रुची

पूसा परिसर में बिल गेट्स ने किया दौरा, खेती किसानी के प्रति व्यक्त की अपनी रुची

गेट्स फाउंडेशन के चेयरमैन ब‍िल गेट्स (Bill Gates) द्वारा पूसा कैंपस में गेहूं एवं चने की उन प्रजातियों की फसलों के विषयों में जाना जो जलवायु पर‍िवर्तन की जटिलताओं का सामना करने में समर्थ हैं। विश्व के अरबपति बिल गेट्स (Bill Gates) द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) का भृमण करते हुए, यहां के पूसा परिसर में तकरीबन डेढ़ घंटे का समय व्यतीत किया एवं खेती व जलवायु बदलाव के विषय में लोगों से विचार-विमर्श किया।

बिल गेट्स ने कृषि क्षेत्र में अपनी रुची जाहिर की

आईएआरआई के निदेशक ए.के. सिंह द्वारा मीडिया को कहा गया है, कि बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सह-अध्यक्ष एवं ट्रस्टी बिल गेट्स (Bill Gates) द्वारा आईएआरआई के कृषि-अनुसंधान कार्यक्रमों, प्रमुख रूप से जलवायु अनुकूलित कृषि एवं संरक्षण कृषि में गहन रुचि व्यक्त की।

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इसी मध्य गेट्स (Bill Gates) द्वारा आईएआरआई की जलवायु में बदलाव सुविधा एवं कार्बन डाइऑक्साइड के उच्च पैमाने के सहित खेतों में उत्पादित की जाने वाली फसलों के विषय में जानकारी अर्जित की है। बिल गेट्स ने मक्का-गेहूं फसल प्रणाली के अंतर्गत सुरक्षित कृषि पर एक कार्यक्रम में भी मौजूदगी दर्ज की। गेट्स ने संरक्षण कृषि के प्रति अपनी विशेष रुचि व्यक्त की। उसकी यह वजह है, कि गेट्स का एक लक्ष्य विश्व स्तर पर कुपोषण की परेशानी का निराकरण करना है। इसलिए ही वह स्थायी कृषि उपकरण विकसित करने के लिए निवेश कर रहे हैं। बिल गेट्स द्वारा खेतों में कीड़ों एवं बीमारियों की निगरानी हेतु आईएआरआई द्वारा विकसित ड्रोन तकनीक समेत सूखे में उत्पादित होने वाले छोले पर हो रहे एक कार्यक्रम को ध्यानपूर्वक देखा।

बिल गेट्स (Bill Gates) ने दौरा करने के बाद क्या कहा

संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक कुमार स‍िंह द्वारा गेट्स के दौरा को कृषि अध्ययन एवं जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में कारगर कदम बताया है। गेट्स का कहना है, क‍ि देश में कृष‍ि के राष्ट्रीय प्रोग्राम अपनी बेहद अच्छी भूमिका निभा रहे हैं। फाउंडेशन से जुड़कर कार्य करने एवं सहायता लेने हेतु योजना निर्मित कर दी जाएगी। जलवायु परिवर्तन, बायोफोर्टिफिकेशन से लेकर फाउंडेशन सहयोग व मदद करेगा तब और बेहतर होगा। आईएआरआई को जीनोम एडिटिंग की भाँति नवीन विज्ञान के इलाकों में जीनोम चयन एवं मानव संसाधन विकास का इस्तेमाल करके पौधों के प्रजनन के डिजिटलीकरण पर परियोजनाओं हेतु धन उपलब्ध कराया जाएगा।
जाने कैसे लेमन ग्रास की खेती करते हुए किसानों की बंजर जमीन और आमदनी दोनों में आ गई है हरियाली

जाने कैसे लेमन ग्रास की खेती करते हुए किसानों की बंजर जमीन और आमदनी दोनों में आ गई है हरियाली

आजकल किसान खेती में अलग-अलग तरह के प्रयोग कर रही हैं. पारंपरिक फसलों की खेती से हटकर आजकल के साथ ऐसी फसलें उगा रहे हैं जो उन्हें इनके मुकाबले ज्यादा मुनाफा देती हैं और उनकी आमदनी बढ़ाने में भी मदद करती हैं. इसी तरह की फसलों में बागवानी सच में काफी ज्यादा चलन में हैं. आज हम लेमन ग्रास/ मालाबार ग्रास या हिंदी में नींबू घास के नाम से जाने वाली फसल के बारे में बात करने वाले हैं जिसे उगा कर आजकल किसान अच्छा खासा लाभ और मुनाफा कमा रहे हैं. इस फसल की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे बंजर जमीन में भी आसानी से उगाया जा सकता है और इसे बहुत ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है.  इसके अलावा इस फसल को उगाने में बहुत ज्यादा कीटनाशक दवाइयां वेतनमान नहीं करनी पड़ती है. यह एक औषधीय फसल मानी जाती है और पशु लेमन ग्रास को नहीं खाते हैं इसलिए आपको अपने खेतों में पशुओं से बचाव करने की भी जरूरत नहीं है. आप बिना कोई  बाड़ा बनाई भी खुले खेत में नींबू घास की फसल आसानी से उग सकते हैं.

बिहार सरकार दे रही है लेमन ग्रास की फसल उगाने पर सब्सिडी

लेमन ग्रास की फसल से जुड़ी हुई एक बहुत बड़ी खबर बिहार राज्य सरकार की तरफ से सामने आ रही है. बिहार सरकार किसानों को नींबू घास की खेती करने पर सब्सिडी दे रही है.  पिछले साल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड में बहुत ही महिला किसानों की तारीफ भी की थी जो उच्च स्तर पर लेमन ग्रास की खेती कर रही है.इसी झारखंड के साथ-साथ बिहार में भी यह फसल उगाने का चलन पिछले कुछ समय में बहुत बढ़ गया है. बिहार के बांका, कटोरिया, फुल्लीडुमर, रजौन, धोरैया, सहित अन्य जिलों के किसान में नींबू घास की खेती कर रहे हैं.

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प्रति एकड़ लेमन ग्रास की फसल पर दी जाएगी ₹8000 की सब्सिडी

जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि नींबू घास की खेती बंजर जमीन पर भी की जा सकती है. ऐसे में बिहार सरकार बंजर जमीन का इस्तेमाल करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है और इसी कड़ी में अगर किसान बंजर भूमि में लेमन ग्रास की खेती करते हैं तो उन्हें प्रति एकड़ की दर से ₹8000 की सब्सिडी बिहार सरकार द्वारा दी जाएगी. अब वहां पर आलम ऐसा है कि कई वर्षों से खाली पड़ी हुई बंजर जमीन पर किसान बढ़-चढ़कर नींबू घास की खेती कर रहे हैं और इससे पूरे राज्य भर में हरियाली तो आई ही है साथ ही किसानों की आमदनी में भी अच्छा खासा इजाफा हुआ है.

लेमन ग्रास का इस्तेमाल कहां किया जाता है?

यह एक औषधि है और लेमन ग्रास का तेल निकाला जा सकता है जो कई तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके तेल से बहुत ही दवाइयां, घरेलू उपयोग की चीजें, साबुन तेल और बहुत से कॉस्मेटिक प्रोडक्ट (Cosmetic Product) भी बनाए जा सकते हैं. नींबू घास की फसल से बनने वाले तेल में पाया जाने वाला सिट्रोल उसे विटामिन ई का एक बहुत बड़ा स्त्रोत बनाता है.

कम पानी में भी आसानी से उगाई जा सकती है यह फसल

अगर आपके पास पानी का स्रोत नहीं है तब भी आप आसानी से लेमन ग्रास की खेती कर सकते हैं. इसके अलावा इस फसल को बहुत ज्यादा कीटनाशक या उर्वरक की भी जरूरत नहीं पड़ती है.  जानवर एक खास को नहीं खाते हैं इसलिए किसानों को जानवरों से भी फसल को किसी तरह के नुकसान होने का डर नहीं है. एक बार लगाने के बाद इस फसल की बात से छह बार कटाई की जा सकती है.

कितनी लगती है लागत?

शुरुआत में अगर आप 1 एकड़ जमीन में है फसल उगाना चाहते हैं तो लगभग बीज और खाद आदि को मिलाकर 30 से 40,000 तक खर्च आ सकता है. 1 एकड़ के खेत में यह फसल उगाने के लिए लगभग 10 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है. बीज लगाने के बाद 2 महीने के अंदर-अंदर इसके पौधे तैयार हो जाते हैं. अगर किसान चाहे तो किसी नर्सरी से सीधे ही लेमन ग्रास के पौधे भी खरीद सकते हैं

1 साल में नींबू घास की फसल की 5 से 6 बार कटाई करके पत्तियां निकाली जा सकती हैं.

अगर आप इस फसल को किसी बंजर या कम उपजाऊ जमीन पर भी लगा रहे हैं तो एक बार लगाने के बाद यह लगभग अगले 6 सालों तक आपको अच्छा खासा मुनाफा देती है.

एक्सपर्ट बताते हैं कि अगर आप नींबू घास की अच्छी पैदावार करना चाहते हैं तो खेत में गोबर और लकड़ी की राख डालते रहें.

बिहार में बनवाए जा रहे हैं लेमन ग्रास का तेल निकालने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट

बिहार में राजपूत और कटोरिया में लेमन ग्रास तेल निकालने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट बनाई जा चुकी है. इसका तेल निकालने के लिए काम में आने वाली मशीन लगभग ₹400000 की आती है.  नींबू घास के 1 लीटर तेल की कीमत बाजार में 1200  से ₹2000 तक लगाई जाती है. इस तरह से किसान कुछ एकड़ में यह फसल उगा कर लाखों का मुनाफा थाने से कमा सकते हैं. अगर 1 एकड़ में भी है फसल लगाई जाती है तो उसमें इतनी फसल आसानी से हो जाती है कि उससे 100 लीटर के लगभग तेल की निकासी की जा सके. यहां के किसानों से हुई बातचीत में पता चला है कि कृषि विभाग भी इस फसल को उगाने में किसानों की आगे बढ़कर मदद कर रहा है. किसानों का कहना है कि इस फसल की मदद से उनकी बंजर  भूमि में तो हरियाली आती ही है साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति में भी हरियाली आई है.
प्राकृतिक खेती से किसानों को होगा फायदा, जल्द ही देश के किसान होंगे मालामाल

प्राकृतिक खेती से किसानों को होगा फायदा, जल्द ही देश के किसान होंगे मालामाल

वर्तमान में केमिकल युक्त खेती के दुष्परिणामों की देखते हुए सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है। इसके लिए सरकार ने इस साल के बजट में प्राकृतिक खेती के लिए अलग से प्रावधान किया है। केंद्र सरकार के साथ-साथ हरियाणा की सरकार भी प्राकृतिक खेती को लेकर बेहद जागरुक है। इसके साथ ही हरियाणा की सरकार ने किसानों को जागरुक करने के लिए प्रोत्साहन योजना शुरू की है। इसके अंतर्गत राज्य सरकार ने साल 2022 में छह हजार एकड़ में किसानों से प्राकृतिक खेती कराई है। इसको राज्य के 2238 किसानों ने अपनाया है। किसानों के रुझान को देखते हुए हरियाणा सरकार ने साल 2023 में राज्य में 20 हजार एकड़ में प्राकृतिक खेती कराने का लक्ष्य रखा है। हरियाणा की सरकार ने किसानों के बीच प्राकृतिक खेती को प्रचारित करने के लिए 'भरपाई योजना' को भी लागू किया है। इसके अंतर्गत प्राकृतिक खेती अपनाने वाले हर किसान को प्रति एकड़ के हिसाब से प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। सरकार ने 'भरपाई योजना' को इसलिए लागू किया है क्योंकि प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को शुरुआत में उत्पादन कम प्राप्त होता है। लेकिन प्राकृतिक खेती करने से भूमि की उत्पादन क्षमता में भी बढ़ोतरी होती है। जो किसानों के लिए लंबे सामयांतराल में फायदेमंद होता है। किसान भाइयों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग देने के लिए हरियाणा की सरकार ने राज्य में कई ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किए हैं। इसके लिए फिलहाल कुरुक्षेत्र गुरुकुल और करनाल के घरौंडा में बड़े ट्रेनिंग सेंटर स्थापित किए  हैं। इसके साथ ही सरकार ने राज्य में 3 और ट्रेनिंग सेंटर स्थापित करने का निर्णय लिया है। इन ट्रेनिंग सेंटरों का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षित करना है। राज्य सरकार के अधिकारियों ने बताया है कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार जागरूकता अभियान शुरू करने जा रही है। इसकी शुरुआत सिरसा जिले से होगी। सिरसा जिले में यह अभियान पायलट प्रोजेक्ट के तहत शुरू किया जा रहा है। यदि यहां पर यह अभियान सफल रहता है तो बाद में इसे चरणबद्ध तरीके से पूरे राज्य में लागू किया जाएगा। इस जागरूकता अभियान में किसानों को उर्वरकों व कीटनाशकों के उपयोग, पानी का समुचित उपयोग, फसल स्वास्थ्य निगरानी, मृदा स्वास्थ्य निगरानी, कीट निगरानी, सौर ऊर्जा का उपयोग और सूक्ष्म सिंचाई तकनीक के माध्यम से पानी के समुचित उपयोग के बारे में विस्तार से बताया जाएगा। ये भी देखें: सिंचाई की नहीं होगी समस्या, सरकार की इस पहल से किसानों की मुश्किल होगी आसान इन दिनों भारत में किसानों के द्वारा प्राकृतिक खेती तेजी से अपनाई जा रही है। जिसके कई स्वदेशी रूप हैं। प्राकृतिक खेती का प्रचार प्रसार सबसे ज्यादा दक्षिण भारतीय राज्यों में है। दक्षिण भारत के राज्य आंध्र प्रदेश में प्राकृतिक खेती बेहद लोकप्रिय है। आंध्र प्रदेश के साथ ही प्राकृतिक खेती छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु के अलावा कई राज्यों में की जा रही है। यह खेती प्राकृतिक या पारिस्थितिक प्रक्रियाओं (जो खेतों में या उसके आसपास मौजूद होती हैं) पर आधारित होती है जो पेड़ों, फसलों और पशुधन को एकीकृत करती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्राकृतिक खेती से किसानों की आय में तेजी से बढ़ोत्तरी हो सकती है।
इस राज्य में हिम ऊर्जा सोलर पॉवर यूनिट लगवाने पर 40% प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा

इस राज्य में हिम ऊर्जा सोलर पॉवर यूनिट लगवाने पर 40% प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा

हिमाचल प्रदेश में हिम ऊर्जा का 250 से 5 मेघावाट का भूमि पर पॉवर प्लांट स्थापित करने का प्रोजेक्ट चालू किया गया है, जिसके अंतर्गत 250 से 1 मेघावाट के प्रोजेक्ट के लिए कोई भी हिमाचली युवा इस प्रोजेक्ट को लगवा सकता है। साथ ही, सरकार को बिजली बेच कर बेहतरीन आमदनी कर सकता है। हिमाचल प्रदेश सोलर ऊर्जा के मामले में अग्रणी राज्यों में से एक है। साथ ही, सरकार की तरफ से इसके विकास और उन्नति हेतु बहुत सारे कदम उठाए गए हैं। जिनके अंतर्गत हिम ऊर्जा के 250 मेगावाट से 5 मेघावाट के प्रोजेक्ट के जरिए जहां एक ओर बिजली की परेशानियां दूर की जा सकती हैं। दूसरी तरफ बेरोजगार युवाओं के लिए एक रोजगार का उत्तम विकल्प भी है। यहां हिम ऊर्जा के सोलर पॉवर प्रोजेक्ट की संपूर्ण जानकारी है।

हिम ऊर्जा के रूफ टॉप पावर प्लांट स्थापना हेतु मिलेगा 40% प्रतिशत अनुदान

हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा एक विशेष योजना जारी की गई है। इस योजना का नाम "सौर उत्पादक एवं अधिगम परियोजना" है। इस योजना के अंतर्गत, निजी एवं सरकारी संस्थानों की छत पर सोलर प्लांट स्थापित करने हेतु वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। इस योजना के चलते सरकारी संस्थानों को 70% प्रतिशत तो वहीं निजी संस्थानों को 30% फीसद अनुदान मुहैय्या किया जाता है। इसके अतिरिक्त इस योजना के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति अपने घर की छत पर 1 से 3 किलोवाट का पॉवर प्लांट स्थापित कर सकता है। इसके लिए हिमाचल सरकार भी 40% प्रतिशत तक का अनुदान प्रदान करती है। इसके साथ ही, योजना के तहत स्थापित सोलर प्लांट की ऊर्जा उत्पादन भी उस संस्था हेतु निःशुल्क होती है, जिसमें वह लगवाई गई है। यह भी पढ़ें : इस राज्य के किसानों को मिलेगा सोलर पंप पर अब 75% प्रतिशत अनुदान इस योजना का प्रमुख लक्ष्य है, कि हिमाचल प्रदेश के संस्थानों के तरफ से उत्पन्न विघुत खर्च कम किया जा सके। वह स्वतंत्र ऊर्जा के स्रोत का इस्तेमाल करके अपनी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ती की सकें। यह योजना हिमाचल प्रदेश के लिए एक काफी बड़ी पहल है, जो कि स्वतंत्रता से विघुत उत्पादन करने में सहायक भूमिका निभाएगा।

किसान भाई अपनी भूमि पर सोलर ऊर्जा प्लांट स्थापित कर अच्छी आय कर सकते हैं

जानकारी के लिए बतादें, कि हिमाचल प्रदेश के अंदर हिम ऊर्जा का 250 से 5 मेघावाट का भूमि पर पॉवर प्लांट लगाने का प्रोजेक्ट चालू किया गया है। इसके अंतर्गत 250 से 1 मेघावाट के प्रोजेक्ट हेतु कोई भी हिमाचली युवा इस प्रोजेक्ट को स्थापित कर सकते हैं। साथ ही, सरकार भी बिजली बेचकर काफी बेहतरीन आमदनी कर सकती है। इसके अतिरिक्त गैर हिमाचली भी 1 से 5 मेघावाट तक का हिम ऊर्जा का प्रोजेक्ट स्थापित कर सकते हैं। लेकिन, ध्यान रहे कि हिमाचल प्रदेश में उसकी स्वयं की भूमि हो अथवा लीज पर ली गई हो। इस प्रोजेक्ट में 1 मेघावाट तक का पॉवर प्लांट स्थापित करवाने हेतु न्यूनतम 1 करोड़ रुपये के खर्चे की आवश्यकता होगी। यह भी पढ़ें : किसान के खर्चो में कमी करने के लिए सबसे अच्छा उपाय है सोलर एनर्जी पर निर्भरता

हिमाचल प्रदेश में समकुल कितने हिम ऊर्जा के प्रोजेक्ट हैं

हिमाचल प्रदेश में समकुल 330 MW का सोलर पॉवर प्रोजेक्ट चालू किया गया है। इनमें से 10 MW की लगवाने हेतु सोलन जनपद में, 100 MW का स्थापित करने ऊना जनपद में वहीं 210 MW की स्थापना कांगड़ा जनपद में की गई हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा अपने अनुमति पत्र वापस लेने के उपरांत कुछ प्रोजेक्ट हेतु अधिकृत ठहराया है। बाकी प्रोजेक्ट भी चालू होने वाले हैं।

हिमाचल प्रदेश में सोलर ऊर्जा प्रोजेक्ट से होंगे काफी फायदे

सोलर पॉवर प्रोजेक्ट हिमाचल प्रदेश के लिए काफी सहायक भूमिका निभा रहा है। इससे यहां की जनता के साथ सरकार को भी काफी फायदा पहुंच रहा है। जानकारी के लिए बतादें कि इससे रोजगार के विकल्प भी उत्पन्न हो रहे हैं। साथ ही, विघुत आपूर्ति में भी इजाफा हो रहा है। इसकी वजह से राज्य में निवेश भी काफी बढ़ रहा है। सोलर ऊर्जा के माध्यम से सड़कों एवं गलियों में विघुत तारों के जाल से निजात मिलती है। साथ ही, सबसे प्रमुख और विशेष बात यह है, कि सोलर ऊर्जा के माध्यम से जल और जलवायु संरक्षण में सहायता मिलती है। साथ ही, लोगों की जीवन शैली में भी काफी हद तक सुधार होता है।

सोलर पॉवर प्रोजेक्ट पर लगभग कितना खर्च हो सकता है

बतादें, कि सोलर पॉवर प्रोजेक्ट हेतु समकुल निवेश की गणना करना काफी मुश्किल है। हालाँकि, जानकारी साझा करते हुए हिमाचल प्रदेश हिमऊर्जा के प्रोजेक्ट मैनेजर विनीत सूद ने कहा है, कि प्रोजक्ट पर आने वाला खर्चा उसके आकार पर निर्भर करता है। यानी कि प्रोजेक्ट का आकार जितना होगा और इसकी जितनी क्षमता होगी उतना ही लागत पर खर्चा आयेगा। उन्होंने कहा है, कि 1 MW सोलर पॉवर प्रोजेक्ट के लिए समकुल निवेश तकरीबन 1 करोड़ रुपये तक हो सकता है। इस आधार पर यदि MW के आकार में इजाफा होता है, तो लागत में भी इजाफा हो जाता है।